'श्रीअवधूतचिंतन' हि अतिशय क्वचित घडणारी घटना होती. अतिशय विलक्षण, अद्भुत आणि मनोहारी असे ह्याचे स्वरूप होते.
ईशद् पृथ्क्कारीका अर्थात सर्व इष्ट करणारी चाळणी.
ह्या श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग कैलाशभद्राचे पहिले पूजन अरुंधती मातेने सगळ्यात पहिल्यांदा केले. अगस्त्य ऋषींनी ज्या प्रथम स्त्रीला उपदेश केला, ती अरुंधती माता व तिला शिवोपासना करण्यास सांगितले
विश्वनाथ व रामेश्वर ही दोन्ही ईश्वराची अर्थात शिवाचीच रूपे आहेत. विश्वनाथ प्रतिपाळ करणारा, तर रामेश्वर शत्रूंचा नाश करणारा. अशा ह्या विश्वनाथ व रामेश्वर ह्या दोघांची ही यात्रा आहे.
दत्तात्रेय अवधूताचे २४ गुरु ही ह्या विश्वातील २४ तत्त्वे आहेत. ह्या महाविष्णूची, परमशिवाची, सद्गुरुतत्त्वाची कृपा मनुष्याला प्राप्त करून देणारे २४ चॅनेल्स आहेत.
Next
Previous
Tuesday, 8 August 2017
‘श्रीअवधूतचिंतन’ यह बार बार घटित होनेवाली घटना नहीं थी| वह एक विशिष्ट समय पर, विशिष्ट जाप संख्या पूर्ण करके निर्माण हुई घटना थी और केवल इतना ही नहीं , यह तो अकारण प्रेम करनेवाले अनिरुद्ध ने हमारे लिए खुली करके दी थी। उन्होंने अपना पूरा का पूराखज़ाना ही मानो हमारे सामने रखा था। अपना जीवन सुखी हो, जीवन में शांती रहे, अपना और अपने प्रियजनों
का भला हो, हमारा जीवन दुखरहित एवं समस्यारहित हों, यह कौन नहीं चाहता? दरअसल इन्हीं बातों को प्राप्त करने के लिए हम जीवनभर संघर्ष रहते करते हैं । लेकिन अच्छा क्या लें और बुरा क्या फेंक दें, यही समझ में नहीं आता। ‘अच्छा है’ यह सोचकर बुरे के पीछे भागते हैं और जो वास्तविक अच्छा है उसे कब फैंक दिया, यही समझ में नहीं आता। जीवनभर केवल भागादौड़ी होती रहती है। भगवान के एक रूप से
दूसरे रूप तक केवल चक्कर मारते रहते हैं । एक गुरु, एक ईश्वर और एक ही ग्रंथ इनपर हम स्थिर नहीं होते।
यह न हों, इसलिये हमारे प्यारे सद्गुरु ने, उस करुणामयी बापू ने 'श्रीअवधूतचिंतन' का अवर्णनीय खज़ाना हमारे सामने रखा। जितना चाहे उतना लूटो, यही वे कह रहे थे। ऐसी स्थिति में हम क्यों अभागी रहें? सच में, जिससे जितना हुआ, उतना उसने लूट लिया।
वे अनिरुद्ध आज हमें मुक्त कंठ से यक़ीन दिला रहे हैं कि “आपका जो बुरा है वह मुझे दो, आपके
पाप मैं अपने सिर लेने के लिए तैयार हूँ। मैं तुम्हारा जीवन सुवर्णमय करने के लिए सब कुछ करूँगा। तुम्हारा घर स्वच्छ करूँगा, कपडे धो दूँगा, पानी भरूँगा” अर्थात यहाँ पर ‘अवधूतचिंतन’ के माध्यम से वह हममें होनेवालीं
सारी ख़ामियाँ लेने के लिए तैयार था।
वाक़ई, कौन
करेगा हमारे लिए इतना? क्या हमारी सगी माँ, बाप.... करेंगे इतना हमारे लिए? फिर वे क्यों कर रहे हैं ? वाक़ई उन्हें हमसे इतना लगाव क्यों है? वे हमसे इतना प्रेम क्यों करते हैं कि वे उसके लिए किसी भी हद तक जाकर हमें सुखी करेंगे ही? हे सद्गुरु, वाक़ई, कितना करते हैं
आप हमारे लिए! तो अब हम भी क्यों पीछे रहें ? नहीं बापू,
हम भी आपसे उतना ही प्रेम करेंगे। आप पर इतना विश्वास करेंगे की बाढ़ आये या तूफान, धूप हो या ठंड़, आग लगे या धुआँ हो, हमारा सबकुछ एक ही, वह अनिरुद्ध!
ग्रंथ, गुरु सब कुछ एकही वह
अनिरुद्ध अनिरुद्ध अनिरुद्ध
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अवधूत चिंतन उत्सव
'गोड तुझे रूप, गोड तुझे नाम' हे शब्द माझ्या मनात ज्याच्याशी निगडीत आहेत, तो माझा दत्तात्रेय व जे दत्तात्रेयाचे रूप आणि नाम माझ्या आंतरबाह्य जो प्रेमगंधाचा मोगरा फुलविते आणि बहरायी आणते, ते रूप म्हणजे अवधूत, नाम अनसुयानंदन आणि तो सुगंध, मला सदैव मोहविणारा सुगंध म्हणजेच त्याचा आशीर्वाद - अवधूतचिंतन श्रीगुरुदेवदत्त. - अनिरुद्ध
Related Websites
Blog Archive
Total Pageviews
14,747
0 comments: