इशद पृथक्कारिका
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पृथ्क्कारिका द्वार से बाहर निकलने के बाद एक बहुत ही बड़ी छलनी रखी थी। उसका नाम था ‘इशद पृथ्क्कारिका’ अर्थात सब कुछ इष्ट करने वाली छलनी। यह छलनी उस परमकृपालु अनिरुद्ध की है। इन चौबीस गुरुओं का पूजन होने के बाद मेरे पास के सूप में जो कुछ भी कंकर, कुटकियाँ बाकी रहने वाला था, वह सब मुझे अनिरुद्ध की छलनी में डालना था। मेरा सूप अनिरुद्ध की छलनी में खाली करना था।
सद्गुरु अनिरुद्ध बापू मेरे लिए मेरे सारे कंकर, कुटकियाँ लेने के लिए तैयार है। मेरे सारे पाप लेने के लिए तैयार है। बापू कहते हैं, मै प्यार से आपका कुली बनूँगा, आपके लिए झाड़ू मारूँगा, पानी भी भरूँगा, आपके कपडे भी धोवूँगा, लेकिन उसके लिए आपको मुझ पर नितांत प्रेम होना चाहिए। मुझे आपसे और कुछ भी नहीं चाहिए। सिर्फ आप मुझे अपना प्रेम दीजिए और आपका जीवन सुखमय, दुखमुक्त, खेदमुक्त, रोगमुक्त हो ही गया समझो।
अवधूत चिंतन उत्सव
'गोड तुझे रूप, गोड तुझे नाम' हे शब्द माझ्या मनात ज्याच्याशी निगडीत आहेत, तो माझा दत्तात्रेय व जे दत्तात्रेयाचे रूप आणि नाम माझ्या आंतरबाह्य जो प्रेमगंधाचा मोगरा फुलविते आणि बहरायी आणते, ते रूप म्हणजे अवधूत, नाम अनसुयानंदन आणि तो सुगंध, मला सदैव मोहविणारा सुगंध म्हणजेच त्याचा आशीर्वाद - अवधूतचिंतन श्रीगुरुदेवदत्त. - अनिरुद्ध
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