'श्रीअवधूतचिंतन' हि अतिशय क्वचित घडणारी घटना होती. अतिशय विलक्षण, अद्भुत आणि मनोहारी असे ह्याचे स्वरूप होते.
ईशद् पृथ्क्कारीका अर्थात सर्व इष्ट करणारी चाळणी.
ह्या श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग कैलाशभद्राचे पहिले पूजन अरुंधती मातेने सगळ्यात पहिल्यांदा केले. अगस्त्य ऋषींनी ज्या प्रथम स्त्रीला उपदेश केला, ती अरुंधती माता व तिला शिवोपासना करण्यास सांगितले
विश्वनाथ व रामेश्वर ही दोन्ही ईश्वराची अर्थात शिवाचीच रूपे आहेत. विश्वनाथ प्रतिपाळ करणारा, तर रामेश्वर शत्रूंचा नाश करणारा. अशा ह्या विश्वनाथ व रामेश्वर ह्या दोघांची ही यात्रा आहे.
दत्तात्रेय अवधूताचे २४ गुरु ही ह्या विश्वातील २४ तत्त्वे आहेत. ह्या महाविष्णूची, परमशिवाची, सद्गुरुतत्त्वाची कृपा मनुष्याला प्राप्त करून देणारे २४ चॅनेल्स आहेत.
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Thursday, 10 August 2017
महत्व -
भारतियों
के मन में हजारों सालों से एक बहुत हु सुंदर लक्ष्य होता है, वह है 'श्रीसर्वतोभद्रकुंभयात्रा'। मतलब यही की काशी जाकर वहां का गंगाजल
कावडी में भरकर रामेश्वरम जाना और उस रामेश्वरम लिंग पर अभिषेक करके रामेश्वरम के पास कन्याकुमारी
का पानी अर्थाततीनसमन्दरों का संगम जहाँहोता है वहां का पानी लाकर काशीविश्वेश्वर पर
बहाना। इसी यात्रा को 'श्रीसर्वतोभद्रकुंभयात्रा' कहा जाता
है।पिछले हजारोंवर्षों से प्रत्येक वैदिकमन, भारतीय हिंदू मन यह
यात्रा करने का प्रयास करता है।सर्वतोभद्र मतलब सम्पूर्ण
रूप से कल्याणकरने वाली यात्रा.
काशिविश्वानाथ- 'नाथ' यह शब्द हमेशा विष्णु
के लिए इस्तेमाल किया जाता है; और रामेश्वर - 'ईश्वर' यह शब्द हमेशा शिवके लिए इस्तेमाल किया जाता है।परन्तु विश्वनाथवरामेश्वर यह दोनों इश्वर की अर्थातशिवके
ही रूप हैं।विश्वनाथ देखभाल करने वाला और रामेश्वर शत्रुओं का नाश
करने वाला।ऐसी विश्वनाथ व रामेश्वर इन दोनों की यह यात्राहै।काशिविश्वनाथ अर्थात गंगाजल का उस रामेश्वरम्पर वहन करना और
कन्याकुमारी, जो उस शिव की राह देखते हुए, उसकी आराधना करते
हुए उस शिव में ही विलीन हुए भक्त,वहां के तीन समुद्रों के संगम का पानी उस काशिविश्वनाथ
पर वहन करना।यही उस जीवाशिव की भेंट है।
अन्नपूर्णा ज्याचे हाती दत्तगुरू एकमुखी।
वह अन्नपूर्णा मतलब शिव की अर्धांगिनी।
कन्याकुमारी मतलब जिवाशिवा
को जोड़ने वाला सेतु, तो कालीमाता मतलब साक्षात महिषासुरमर्दिनी, इनकी यह
यात्रा है। इसीलिए वह सम्पूर्ण
रूप से कल्याण करने वाली है और इसीलिए यहाँ की प्रदक्षिणा का मार्गनामाकृति है।
रचना:
इस सर्वतोभद्रकुंभ यात्रा
में एक तरफ श्री काशिविश्वेश्वर के गंगाजल का जलाशय था। उसके पास ही श्री काशिविश्वेश्वर की तस्वीर और उसके आगे उसका
शिवलिंग रखा गया था। दूसरी तरफ श्री रामेश्वरम्यहाँ का पानी का जलाशय और
उसके पास श्री रामेश्वरा की तस्वीर और शिवलिंग रखा गया था।
यह यात्रा
करने वाले श्रद्धालुओं को एक का वाद दी गई। उन्हों यह कावड गंगाजल से भरके लेकर और नाम प्रदक्षिणा
करके, उस जल का रामेश्वरम का अभिषेक किया और यह अभिषेक करते समय'पार्वती पते हर हर महादेव 'यह जाप किया गया।
पुण्यफल:
शिव की राह
देखते हुए, उसकी आराधना करते हुए कन्याकुमारी भक्त उनमे विलीन हो गई, एकरूप हुई। यह यात्रा मेरे जीवशिवा का मिलन करने
वाला ऐसा ही एक सेतु थी।यह यात्रा
करते समयकावडी में पानी लेकर उस शिवशंकर को अभिषेक करते हुए श्रद्धालुओं का शरीरथक
गया, उस मन को बुद्धि की तरह बर्ताव करने को कहा और वहीँ श्रद्धालुओं के जिवाशिवा का मीलन अर्थात मेरे
मन को पवित्र बुद्धि की आज्ञा से बनाना, बदलवाना, व्यवहारकरने को कहना।इस यात्राने श्रद्धालुओं को विवेक प्रदान किया। जीवन में शुभ, हितकारी चीजें करके जीवन सुखमय आनंददायी बनाने के लिए अशुभहानिकारक
चीजों का विनाश करने के लिए यह विवेक हमें सिखाता है, वह सद्सद्विवेकबुद्धि प्रदान करता है।
* इस कुंभयात्रा से हमारे मन के भूत काल के - भूतों का
भय कम होता है।
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अवधूत चिंतन उत्सव
'गोड तुझे रूप, गोड तुझे नाम' हे शब्द माझ्या मनात ज्याच्याशी निगडीत आहेत, तो माझा दत्तात्रेय व जे दत्तात्रेयाचे रूप आणि नाम माझ्या आंतरबाह्य जो प्रेमगंधाचा मोगरा फुलविते आणि बहरायी आणते, ते रूप म्हणजे अवधूत, नाम अनसुयानंदन आणि तो सुगंध, मला सदैव मोहविणारा सुगंध म्हणजेच त्याचा आशीर्वाद - अवधूतचिंतन श्रीगुरुदेवदत्त. - अनिरुद्ध
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